सम्पादकीय

 


इकॉनमी रेटिंग बीएए 2 से बीएए 3 पर


 कोरोना की महामारी और लॉकडाउन की जकड़न से पूरा विश्व पस्त पडा है। गौर करने की बात है कि भारत कोई अकेला देश नहीं है जिसकी रेटिंग गिराई गई है। मूडीज ने सऊदी अरब और दक्षिण अफीका समेत 21 और देशों की रेटिंग भी गिराई है, जो सभी विकासशील व उभरती अर्थव्यवस्था वाले देश हैं। लेकिन उनका जिक्र करके अगर हम खुद को भुलावे में रखते हैं तो हालात की गंभीरता को समझने में हमसे भारी चूक हो जाएगी। ग्लोबल रेटिंग एजेंसी मूडीज ने 22 साल में पहली बार भारत की सॉवरेन रेटिंग गिराते हुए इसे बीएए2 से बीएए3 पर ला दिया है, जो निवेश की दृष्टि से सबसे निचली रेटिंग है। इससे पहले इस संस्था ने जन 1998 में वाजपेयी सरकार द्वारा परमाणु परीक्षण किए जाने के बाद भारत की रेटिंग गिराई थी। सामान्य स्थिति इस वक्त भी नहीं है। सचाई यह है कि मूडीज द्वारा भारत की रेटिंग गिराने का फैसला कोरोना के दष्प्रभावों पर आधारित नहीं है। यह फैसला भारत के नीति निर्माता संस्थानों की क्षमता और हमारे वित्तीय क्षेत्र के दबावों को लेकर मूडीज की समझ बताता है। यह दोहराना भी जरूरी है कि इसी रेटिंग एजेंसी ने तीन साल पहले 2017 में आर्थिक सुधारों की संभावना को आधार बनाकर भारत की रेटिंग ऊंची की थी। वे अपेक्षाएं पूरी नहीं हुई और मूडीज को इनके पूरे होने की कोई उम्मीद भी नहीं दिख रही। सरकार के सामने कठिनाइयां पहले भी कम नहीं थीं, पर अब रेटिंग गिराए जाने के बाद आगे की राह थोड़ी और मुश्किल होने वाली है। जिन कंपनियों के चीन से निकलकर भारत आने की उम्मीद की जा रही थी, उनके निवेशकों को इस फैसले पर हामा भरन माहचक हा सकता ह। सस्थागत विदशा निवशका कलिए । भी भारत पर दांव लगाना पहले की अपेक्षा और कठिन हो जाएगा। जहां तक देश के अंदर निवेश बढ़ाने की बात है तो वह प्रक्रिया भी सरकार और रिजर्व बैंक की तमाम कोशिशों के बावजद जोर नहीं पकड रहीब्याज दरों में लगातार भारी-भरकम कटौती के बावजूद उद्योग जगत बैंकों से लोन लेने का रुझान नहीं दिखा रहा।